*सम्भल की घटना प्रशासन की पंगुता है*

*सम्भल की घटना प्रशासन की पंगुता है*
      विगत दिनो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर सम्भल की जामा मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए एक निरीक्षण टीम जामा मस्जिद पहुँची|टीम अपना काम शुरू ही की थी कि वहाँ हजारों की उन्मादी भीड़ डग्गर पत्थर ईंट लाठी डंडा और असलहा लिए पहुँच जाती है|और  शुरू हो जाता है तांडव|पुलिस टीम पर पत्थरबाजी जूतेबाजी लट्ठबाजी यहाँ तक की गोलीबाजी हुई|जिसमें चार युवकों की मौत हो गई|इसके बाद सबसे भयंकर बात जो अब हो रही है,वो है बहसबाजी|आरोप प्रत्यारोप|एक दूसरे को बदनाम करने की कुत्सित चालबाजी|
       जिस तरह से निरीक्षण टीम पर उन्मादी भीड़ ने पत्थरबाजी की वह निंदनीय है|उसकी जितनी भर्त्सना की जाय कम है|इस घटना से यह बात तो स्पष्ट हो रही है कि सच को साबित करने के लिए बलिदान देना पड़ता है|जो कि सम्भल में हुआ|किस भय से यह उन्माद फैलाया गया|क्या सच में मस्जिद की जगह मंदिर था|जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई|क्या इसी सच्चाई को दबाने के लिए चार युवाओं की बलि चढ़ाई गई|क्या सच्चाई को दबाने के लिए ही दंगा कराके अनेक लोगों के साथ माँ भारती को भी लहूलुहान किया गया|इस पूरे प्रकरण पर जब हम गहराई से विचार करते हैं तो यही पाते हैं कि,वहाँ मंदिर था जिसे आक्राताओं ने तोड़कर मस्जिद बना दिया|निरीक्षण में यह बात सामने आ जाती इसलिए मूर्खों की भीड़ इकट्ठा करके यह दंगा करवाया गया|यदि सच में वहाँ मस्जिद होती तो जो यह नर बलि चढ़ी है,शायद न चढ़ती| 
      नेताओं की बहसबाजी सुनकर बहुत दुख होता है|एक पार्टी के मुखिया कह रहे हैं कि पुलिस ने पत्थरबाजों पर लाठियाँ बरसा के गलत किया है|अब ऐसे नेता से हम देश की सुरक्षा की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं|जो खुलेआम दंगाइयों का सुरक्षा कवच बना फिर रहा है|शायद ऐसे ही नेताओं की शह पर इस तरह के दंगे फसाद आयोजित किये जाते हैं|
     आयोजित इसलिए कह रहे हैं कि जिस तरह से घटना स्थल पर अचानक से हजारों की संख्या में वहाँ दंगाई जुटे|वो अचानक से तो कत्तई नहीं आये|उन्हें सुनियोजित तरीके से बुलाया गया था|वे दंगाई यदि विरोध करने आते तो खाली हाँथ आते|उनके हाँथों में ईंट पत्थर और असलहे नहीं होते|वो तो पूरी तैयारी से दंगा करने ही आये थे|और किये भी|उनका इरादा कत्तई शांति का नहीं था|जो आज की विरोधी पार्टियाँ कह रही हैं|उन दंगाइयों का जो इरादा था वो किए|यदि वो शांति के लिए आये होते तो चेहरों पर नकाब नहीं होते|वहाँ आस पास के सी सी टीवी कैमरे रात में ही नहीं तोड़े जाते|उनकी तरफ से पूर्व तैयारी पहले से ही थी|इसीलिए घटना स्थल पर हजारों की भीड़ पहुँचकर तांडव करती है|वो अपनी तैयारी में अपनी पूरी ताकत झोंक दिए थे|इसीलिए इसे आयोजन का नाम देना पड़ रहा है|इस आयोजन को सफल करा दिया प्रशासन की पंगुता ने|
      इसे प्रशासन की पंगुता हम इसलिए कह रहे हैं कि,प्रशासन सब कुछ जानते हुए पंगु बना रहा|उसके सभी खुफिया तंत्र मजे से पनीर बिरयानी खा के सो रहे थे|और उन्मादी लोग अपनी तैयारी में लगे थे|सीबीआई सीआईडी आईबी आदि जितने तंत्र थे सबके सब फेल|किसी को भी दंगाइयों की तैयारी पता तक नहीं चल सका|ऐसा कैसे हो सकता है|ऐसा इसलिए हो सका कि ए उपरोक्त जितने तंत्र हैं सब शराब शबाब और कबाब में मस्त रहे|और दंगाई अपना परचम फहरा दिए|यह प्रशासन की पंगुता नहीं है तो और क्या है|प्रशासन यदि सजग होता तो सम्भल में जो हुआ, वह नहीं हो पाता|भला बताओं इतनी चुस्त व्यवस्था होने बाद भी यदि दंगाई मांसिकता वाले अपने मंसूबे में सफल हो जाते हैं तो इसे पंगुता न कहें तो क्या कहें|सम्भल में दंगा होना आज किसी अजूबे से कम नहीं है|क्योंकि सम्भल उत्तर प्रदेश में आता है|और उत्तर प्रदेश का मुखिया इस समय प्रदेश देश की बात छोड़िए विश्व में दंगाइयों के काल के रूप में प्रतिष्ठित है|और उसी के प्रदेश में इस तरह की घटना घट जाय तो अजूबा कहना लाजिमी है|यह घटना यदि प्रशासनिक अधिकारी चाहते तो रोंका जा सकता था|लेकिन प्रशासनिक अधिकारी भी  शायद योगी आदित्यनाथ के ही सहारे रह गये|और यह बदनुमा दाग योगी के दामन पर लगा गये|
    कांग्रेस से लेकर तमाम वो सभी दंगा समर्थित पार्टियाँ सरकार से विपक्ष को सवाल करने का मौका दे दिये|विपक्षी पार्टियाँ आज सरकार  को कटघरे खड़ा करके सवाल पूँछ रही हैं|उसमें यह सवाल प्रमुखता से पूँछ रही हैं,जो कि जायज और जरूरी दोनो है|आखिर राज्य या देश का खुफिया तंत्र क्या कर रहा था|हजारों लोग यूँ मिनटों में तो एकत्रित नहीं हो सकते|और न ही एक दो गाँव के थे|हजारों लोगों का सुबह सुबह सम्भल में पहुँना और निरीक्षण टीम पर धावा बोलना,इस बात को बल देता है कि यह तैयारी एक या दो दिन की नहीं बल्कि हप्तों पहले की है|इसलिए प्रशासन की पंगुता कहना पड़ रहा है|
पं.जमदग्निपुरी

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