ये क्षण, वो क्षण*यह वर्तमान, हमारा प्यारा वर्तमान,उस समय अतीत बना होगा।

*ये क्षण, वो क्षण*
यह वर्तमान, हमारा प्यारा वर्तमान,
उस समय अतीत बना होगा।
तुम्हारा यह फूल-सा चेहरा,
मानस-पटल पर धूमिल पड़ा होगा।
तुम्हारे लम्बे-काले-घने केश सफे़द होंगे,
मैं भी काट-बिता रहा होऊँगा ....
अपनी जिन्दगी के दो क्षण।।
दिल में उठते तूफानों को रोकना चाहूँगा,
कँपकँपाते-फफकते होंठों को भी भींचना चाहूँगा।
मगर वे उदासी का कारण पूछेंगे,
यह भी पूछेंगे कि तुम परेशाँ क्यों हो।
और मैं कुछ बोल नहीं पाऊँगा,
कुछ बता नहीं पाऊँगा ...।।
एक नजर जायेगी गुजरे जमाने की ओर,
जहाँ आज तुम्हारे साथ हूँ-....
उसे सोचना पड़ेगा।
याद आयेगा वह गुजरा जमाना,
वह समय, वे दोस्त, 
याद आयेंगे वे चाँद सितारे ....।।
उदास हो जायेगा चेहरा,
भावाकुल हो जायेंगी आँखें।
असंख्य तूफान दिल में कसमसाएँगे..  धराशायी होगें .....
बिन बुलाए अतिथि बनकर ये अश्क,
कुलबुलाते-फड़फड़ाते अश्क .....
धीरे-धीरे निकलना चाहेंगे, जाना चाहेंगे गन्तव्य की ओर ....।।
एक हूक उठेगी दिल में, उफ! तुम्हारे साथ बीते क्षण,
उस समय मुझे चिढ़ा रहे होंगे; तुम्हारे अपने 'पवन' को।
और रोना चाहूँगा मैं अपनी मजबूरियों पर,
ये क्षण कुछ और हैं, वे क्षण होंगे कुछ और।
जल जायेंगे तुम्हारी विरहाग्नि के महल में,
या डूब जायेंगे हम आँसुओं के समुन्दर में।।

पवन कुमार पाण्डेय
अनुभाग अधिकारी
श्री वेंकटेश्वर महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय)

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