मुक्तककार गिरिश कुमार श्रीवास्तव गिरीश

मुक्तककार गिरिश कुमार श्रीवास्तव गिरीश 
किसी भी हाल में उन तक हमारी बात न पहुंचे।। 
उजाला ही उजाला रात में भी रात न पहुंचे।। 
दुखे न दिल किसी का भी,मेरी कोशिश यही भरसक-
भले नुकसान हो मेरा, उन्हें आघात न पहुंचे।।

उठा कर हाथ दोनों आखिरी फ़रियाद तक पहुंचे।। 
कलम कर लेंगे सर ज़ज्बात गर उन्माद तक पहुंचे।। 
बहुत शह दे चुके हैं अब जरूरत मात देने की-
संदेशा याद रख्खें पीढ़ियों के बाद तक पहुंचे।।

वो सबका है भला कैसे किसी के साथ न पहुंचे।। 
पुकारा हो हृदय से और दीना नाथ न पहुंचे।। 
अछूता रह नहीं सकता वो सबके साथ रहता है
असंभव है जहाँ चाहे वो उसका हाथ न पहुंचे।।

उन्हीं की चर्चा होती है उन्हीं को याद करते हैं।। 
जो अपनी ज़िन्दगी कुर्बान जिन्दाबाद करते हैं।। 
निगाहें फेर लेते हैं कहें अपना भला कैसे-
फरिश्ते है मुसिबत में मदद इमदाद करते हैं।।

निराशा है घना उतरा हुआ चेहरा सघन हलचल।। 
किसी का भी किसी पर आस्था विश्वास है न बल।। 
ये गठबंधन किसी भी बात पे टिकता नहीं दिखता--
अगर मंजिल को पाना है,अकेला चल अकेला चल।।

चला चल -चल मुसाफ़िर पूछता है जांचता है क्या।।
अभी भी दिल से तेरे नफ़रतों का वास्ता है क्या।। 
गलतफहमी तुम्हारी है मुझे कुछ भी नहीं कहना-
मुहब्बत के अलावा और कोई रास्ता है क्या।।

मनन चिन्तन सहज,भाषा से हम मनुहार करते हैं।। 
सुकोमल भावना से शब्द का श्रृंगार करते हैं।। 
 समाई है मेरी सांसों में कविता प्राण है मेरी-
ग़ज़ल गीतों से मुक्तक छन्द से हम प्यार करते हैं।।

फुर्सत नहीं कि पूछ लें क्या हाल चाल है।। 
मिलने मिलाने का कहाँ कोई सवाल है।। 
ग़म से उबर पाये नहीं हम आज तक गिरीश-
 दुख: दर्द है शिकवा गिला दिल में मलाल है।।

फिर आग लगाने के लिए आ रहें हैं क्यूँ।। 
प्यासी मेरी निगाहों को तरसा रहे हैं क्यूँ। 
खुल करके सामने मेरे आते नहीं हुज़ूर-
आंखे चुरा रहे हैं क्यूँ, कतरा रहे हैं क्यूँ।।

जमाना याद रख्खेगा निशानी छोड़ जायेंगे।। 
हम अपने शौर्य साहस की कहानी छोड़ जायेंगे।।
कशम माँ भारती की जान की परवा नहीं करते-
वतन के वास्ते चढ़ती जवानी छोड़ जायेंगे।।

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