छंदकार एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव के खूबसूरत मुक्तक गांठ ही बस गांठ मन में व्यर्थ मत गठजोड़ कर।। भाग जायेंगे समय से पहले बंधन तोड़ कर।
छंदकार एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव के खूबसूरत मुक्तक
गांठ ही बस गांठ मन में व्यर्थ मत गठजोड़ कर।।
भाग जायेंगे समय से पहले बंधन तोड़ कर।
अपनें- अपने दल के मुखिया झुक नहीं सकता कोई-
चूर कर देंगे सपन अनुबंध सारे तोड़ कर।।
हो गया निर्मुक्त सब उसके सहारे छोड़ कर।।
कर दिया मैंने समर्पण, मोह माया तोड़ कर।।
आप के सानिध्य का फल पा गया,मल धुल गया-
था कठिन पर आप ने तो रख दिया रुख़ मोड़ कर।।
रख रहे हो बेवजह क्यों पाई- पाई जोड़ कर।।
एक दिन जाना पडे़गा सब यहीँ पर छोड़ कर।।
अर्थ युग है व्यर्थ जीवन है बिना सम्बन्ध के-
कुछ नहीं पाओगे पछताओगे रिस्ते तोड़ कर।।
मनमानी कर रहे हैं कहाँ मान रहे हैं।।
परिणाम क्या निकलेगा खूब जान रहे हैं।।
मंजिल का भी पता है रास्ता भी है पता-
फिर भी भटक रहे हैं खाक छान रहे हैं।।
गंध हिस्से आई सुमन के लिए।।
सूर्य शशि और सितारे गगन के लिए।।
मेरी कविता रिझाने मुझे आ गई-
उर विकल भाव उमड़े सृजन के लिए।।
त्याग कर राम को जो अली बन गये।।
हाइवे थे कभी अब गली बन गये।।
नाच अंगुली पे सत्ता नचाती रही-
अब तो हद हो गई, वो कुली बन गये।।
सिर्फ़ अफ़वाह है, कि सुलझने लगे।।
बातों- बातों से अक्सर उलझनें लगे।।
कुछ समझ में मेरे बात आई नहीं-
आप क्यूँ गै़र मुझको समझनें लगे।।
Comments
Post a Comment