विवेक भ्रष्ट ही पतित होते हैं--- प्रो.डा.अखिलेश शर्मा

विवेक भ्रष्ट ही पतित होते हैं--- प्रो.डा.अखिलेश शर्मा
महरौनी(ललितपुर)-- महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में युवा पीढ़ी को वैदिक धर्म के सही मर्म को जनाने हेतु संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित व्याख्यान माला के क्रम में महाराज भर्तहरि जी द्वारा रचित "नीतिशतक में वर्णित नीतियाँ" विषय पर वैदिक विद्वान आचार्य प्रोफेसर डॉ.अखिलेश शर्मा जलगाँव महाराष्ट्र, सारस्वत अतिथि प्रोफेसर डॉ.दीनदयाल वेदालंकार वेद विभाग गुरूकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार एवं अध्यक्षता स्वामी आर्य तपश्वि दिल्ली एवं संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के संचालन में सम्पन्न हुआ।
वैदिक विद्वान आचार्य प्रोफेसर  डॉक्टर अखिलेश शर्मा जलगाँव महाराष्ट्र ने कहा कि संस्कृत साहित्य के ऐसे अनेक ग्रंथ हैं जिन का परिचय सामान्य जनों को बहुत कम है। हम सब कबीर को जानते हैं तुलसीदास को जानते हैं उनके साहित्य को जानते हैं। पर ऐसे बहुत कम लोग हैं जो महाराज भर्तृहरि   और उनके साहित्य को जानते हैं। महाराज भर्तृहरि के तीन अत्यंत महत्वपूर्ण काव्य है ,
 नीति शतक ,शृंगार शतक एवं वैराग्य शतक। इनमें नीति शतक में सामान्य जनों के लिए वृद्धजनों के लिए बालकों के लिए स्त्रियों के लिए युवाओं के लिए बड़ा ही सुंदर मार्गदर्शन किया गया है। कवि ने मूर्खा विद्वान बुद्धिमान सज्जन दुर्जन राजा प्रजा इत्यादि सभी को संबोधित करने का प्रयत्न किया है। कवि कहते हैं कि संसार में वही व्यक्ति सुखी रह सकता है जो या तो अपनी मूर्खता को जान ले दूसरों की मूर्खता को जान ले। क्योंकि हटवादी एवं मूर्ख व्यक्ति  को समझाना अत्यंत कठिन है उनके लिए इस संसार में अभी तक कोई भी औषधि तैयार नहीं हुई है। कभी कहते हैं जो भी मूर्खों को  अज्ञानियों को समझाना चाहता है उसे बहुत ही धैर्यवान होना चाहिए। अब यह समझाने वाला चाहे कोई गुरु हो माता पिता हो उपदेशक हो या अन्य कोई भी हो। जिस प्रकार हाथी खो शक्ल से बांधा जाता है परंतु यदि कोई मूर्ख व्यक्ति को समझाना चाहता है तो उसके अंदर हाथी को कमल के नाल से बांधने का सामर्थ्य चाहिए समुद्र को शहद की एक बूंद से मीठा करने का सामर्थ्य चाहिए, शिरीष पुष्प के कोमल भाग से हीरे में छेद करने का सामर्थ्य चाहिए। तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति जितना अधिक धैर्यवान होगा  सहनशील होगा उसका अपने बालकों पर विद्यार्थियों पर छात्रों पर समाज पर राष्ट्र पर उतना ही अधिक प्रभाव होगा। पर संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जो समझाने पर भी नहीं समझते हैं तो कभी उनके लिए कहता है कि जैसे नदियां शीर्ष स्थान से धीरे धीरे निम्न समुद्र तक चली जाती हैं ठीक इसी प्रकार विवेक से भ्रष्ट लोग भी धीरे-धीरे पतन की ओर चले जाते हैं। जब व्यक्ति उठना चाहता है तो हजारों हाथ उठाने वाले तैयार हो जाते हैं गिरना भी चाहता है तो आजा रो हाथ गिराने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।

सारस्वत अतिथि प्रोफेसर डॉक्टर दीन दयाल वेदालंकार वेद विभाग गुरूकुल काँगड़ी हरिद्वार ने कहा कि  नीतिकारों ने जो भी विधाएं हमें नीति वचनों के आधार पर दी है वह हमारे जीवन के लिए सम्भल रूप हैं।
अध्यक्षता करते हुए स्वामी आर्य तपश्वि ने कहा कि आज दुनिया में जो अराजकता फैली हुई है धर्म के लिए,जमीन के लिए,और अपने अस्तित्व के लिए बहुत बड़ी घातक सिद्ध हो सकती है।

वेविनार में आचार्य शिवदत्त पांडेय  सुल्तानपुर,अविनिश मैत्री श्री वेदकला संवर्द्धन परमार्थ न्यास राजस्थान,जयपाल सिंह बुन्देला मिदरवाहा हेमंत भोडेले शिक्षक, पवन वर्मा एडवोकेट दिल्ली,अवधेश राजा शिक्षिका मिदरवाहा,शेर सिंह आर्य अलीगढ़,बृजेन्द्र नपित शिक्षक,डॉ वेद प्रकाश शर्मा बरेली,ईश आर्य पतजंलि प्रभारी हरियाणा, दया आर्या,कमला,ईश्वर देवी,सुरेश गौतम अमेरिका,सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन जुड़ रहें हैं।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।

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