*गाँव,रिश्तेदार और परोजन*हमारे ग्रामीण परिवेश मेंशुभ कर्मों के आयोजन में बाहर रहने वाले परिवारी जन एवं

*गाँव,रिश्तेदार और परोजन*

हमारे ग्रामीण परिवेश में
शुभ कर्मों के आयोजन में 
बाहर रहने वाले परिवारी जन एवं
रिश्तेदारों की...अमूमन...
तीन-चार दिन पहले से
शुरू होती है जुटान....!
इन सबके साथ होती है डोलची,
अटैची या फिर बक्शा...और...
सामान्य रूप से सब में ताले
अलग-अलग ढंग के होते हैं...
जुटान के बाद पहली समस्या...
स्टोर रूम की आती है 
जैसे-तैसे इस समस्या का
समाधान होने पर.... 
एक बड़ी समस्या शुरू होती है
दूध,चाय,नाश्ता-भोजन,
शौच और सोने आदि की
व्यवस्था और प्रबंधन की....
शौच की समस्या तो 
अलग तरह की ही होती है
आम तौर पर खुले में 
निवृत्त होने वालों को 
समय पर लोटा भी.... 
उपलब्ध नहीं हो पाता
इसी तरह सोने के लिए बिस्तर,
कथरी, बिछौना,खटिया तो
नसीब से ही उपलब्ध हो पाता है
इसमें भी किसी के साथ 
अगर छोटा बच्चा आया हो तो 
रोज सुबह में बिस्तर....
अक्सर गीला ही मिलता है
इस पर महिलाओं की..... 
भुन-भुन का कोई जोड़ नहीं
परोजन अगर जाड़े का हो तो
कच्ची फर्श पर ही पुआल या
बाजरे की डांठ के ऊपर
कथरी,दरी,कम्बल बिछावन पर... 
एक ही रजाई या ओढ़ने में 
लोगों के दुबक कर सोने से
गुजारा हो जाता है और
जाड़े से निजात मिल जाती है...
भले ही रात भर ओढ़ने की
खींचातानी चलती रहती है
गर्मी के परोजन में,
खुले आकाश के नीचे 
किस्सा-कहानी,गाना-बजाना
करते-कराते रात बीत जाती है
सुबह सब कुछ सामान्य रहता है
मित्रों...! गाँव के परोजन में...
सबके सामने.....सबके पास....
कुछ न कुछ समस्या होती ही है
किसी के पास बर्तन मांजने तो
किसी के पास खाना बनाने की,
किसी की मालिकाना दिखाने की,
किसी की हुकुम चलाने की तो
बड़े-बुजुर्गों या मलिकार के सामने
परोजन सम्पन्न कराने की
चिन्तायुक्त बड़ी समस्या होती है...
इन सब समस्याओं के इतर
परोजन के दौरान....
चप्पल-जूता गायब हो जाना या
किसी से बदल जाना....
धोती,बनियान,रुमाल और गमछा 
आपस में बदल जाना....
सामान्य सी बात होती है,
सिंगार-पटार की वस्तुओं का तो
कोई पुछवार भी नहीं होता...
जिसको जो मिला,जिसका मिला
पोता,लगाया और सज-संवर गया
भले ही सामने वाला....
आँख दिखाए या मीन-मेख करे...
परोजन के सम्पन्न होने पर....
खुशनुमा यादें,अहसास और
तमाम शिकायत एवं गिले-शिकवे
साथ लेकर,कहा-सुनी करते हुए
वापस चले जाते हैं...
सभी रिश्तेदार और
बाहर रहने वाले परिवारी जन...
फिर भी रिश्तो का अपनापन और
मजबूती इतनी होती है कि
आने वाले परोजन में फिर से
तीन-चार दिन पहले ही
शुरू हो जाती है घर पर
नातेदार-रिश्तेदार और 
परिवारीजन की जुटान....!!


रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर,जौनपुर

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